रात...(070212)
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वो कहती है...
अच्छा लिखते हो...
बेहतर कर सकते हो...
उम्दा बन सकते हो...
लिखता अब भी हूं...
पर क्या बेहतर है...?
उम्दा हो सकता है...?
इसलिए पूछता हूं...
चल, आज फिर चलते हैं...
उस रात की तरह...
जिस रात...
रात चली थी...
उस बात की तरह...
वो बात...
जो बात है...
हमारी बातों में...
जो हुई थी...
उन रातों में...
वो रातें...
जो हैं...
हमारे ख्वाबो में...
वो ख्वाब...
जो हैं...
हमारी आंखों में...
वो आंखें...
क्या अब भी...
मुझे ढूंढ़ती हैं...?
ढूंढ़ती हैं...
उस रात की तरह...
जिस रात...
हम मिले थे...
उस रात की तरह...
चल, आज फिर चलते हैं...
उस रात की तरह...
जिस रात...
एक हुए थे...
उस रात की तरह...
चल, आज फिर चलते हैं...
उस रात की तरह.....
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