Tuesday, June 26, 2012

कोशिश... (180612)

लिखने की कोशिश करता हूं
समझा नहीं सकता
क्या लिख रहा हूं
पहले जो समझ लूं तो,
लिख ही क्यों दूं

कहने की कोशिश करता हूं
वो कह न सका
जो कह पाता
जो कह देता
वो सुन लेते

समझाने की कोशिक करता हूं
जो समझा न सका
वो समझ न सके
जो समझ पाते
तो रुक जाते

सुनाने की कोशिश करता हूं
वो दूर बहुत हैं
सुनते, समझते
तो उठते नहीं
कोशिश ये होती नहीं...

Friday, February 24, 2012

तुम्हें गए एक साल हो गया...(230212)
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आज तुम्हें गए एक साल हो गया...
आज तुम्हे गए एक साल हो गया...
क्या करूं...
इस एक साल को तुम्हारी यादों में जोड़ दूं...
तुम्हारे साथ बिताए पलों में एक साल और बढ़ा दूं...
या फिर...
इस एक साल को उस वक्त से निकाल दूं...
या फिर...
इस एक साल को उस वक्त से निकाल दूं...
जिस वक्त तेरी बाहों में सूकून से जिया करता था...
आज तुम्हें गए एक साल हो गया...
आज तुम्हे गए एक साल हो गया...

Sunday, February 19, 2012


शाम...(180112)
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अभी जागे ही थे कि शाम हो गई
सोचा, सवेरा हो चुका है
सुबह तो हुई है
पर
अब तो रात ही रात है
रात ही रात है
सोने के लिए
रात ही रात है
रोने के लिए
रात ही रात में
आंखे बंद की
रात ही रात में
आंखे खुली रहीं
आंखे बंद की
आंखे खुल गईं
जो नहीं बदली
वो तेरी तस्वीर थी
जो बदल गई
क्या वो.....
अभी जागे ही थे
कि शाम हो गई...

वक्त...(221211)
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वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

जो वक्त बीत गया
उस वक्त में जी रही हो...
मुझसे कह रही हो
अपनी जिंदगी जी रही हूं...

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

सुना था
गुजरा वक्त
लौटकर नहीं आता...
पर तुम तो
वक्त की रानी निकली...
उस वक्त को
दोबारा जी रही हो...
कमाल कर रही हो...

चेहरा बदल रही हो
किरदार बदल रही हो...

वक्त में पीछे जाकर...
कैसे जी रही हो...?

नहीं...
चेहरा बदल दिया है
किरदार बदल दिया है...

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

नाम देने का
बहुत शौक है तुम्हें...
नये किरदार को
क्या नाम दिया है...?
पुराना भूल गई हो...?
मैं पुकार दूं...?

वक्त में पीछे जाकर...
कैसे जी रही हो...?

हम जब कहते थे
यादों को संजोना है...
एक तस्वीर लेने दो...

तब कहती थी
इस कैमरे का क्या...
दिल के कमरे में
तुम्हारी डिजीटल लाईब्रेरी है...

क्या वो डिलीट हो गई...?

लगता तो ऐसा है...
(पर... काश ऐसा न हो...)

क्योंकि, अब तो
पोस्टरों में
वो पोज नजर आते हैं...
जिन्हें खिंचवाने के लिए
आप हमसे
नजरें चुराते थे...

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

अभी भी
आंखों में चुभन है...
कानों में
सन्नाटे की सीटी है...
हर सांस में
अभी भी
वही तेरी महक है...
जिस्म के
बाएं हिस्से में
वो खट-खट...
होती है...
आंखें बंद करते ही...
होठों पर...
वो एहसास आता है...

पर सवाल भी...
एक यही आता है...

क्या तेरे अंदर...
मुझे,
अभी भी,
पाया जा सकता है...?

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

बता दो
वक्त में पीछे जाकर...
कैसे जी रही हो...?

रात...(070212)
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वो कहती है...
अच्छा लिखते हो...
बेहतर कर सकते हो...
उम्दा बन सकते हो...
लिखता अब भी हूं...
पर क्या बेहतर है...?
उम्दा हो सकता है...?
इसलिए पूछता हूं...
चल, आज फिर चलते हैं...
उस रात की तरह...
जिस रात...
रात चली थी...
उस बात की तरह...
वो बात...
जो बात है...
हमारी बातों में...
जो हुई थी...
उन रातों में...
वो रातें...
जो हैं...
हमारे ख्वाबो में...
वो ख्वाब...
जो हैं...
हमारी आंखों में...
वो आंखें...
क्या अब भी...
मुझे ढूंढ़ती हैं...?
ढूंढ़ती हैं...
उस रात की तरह...
जिस रात...
हम मिले थे...
उस रात की तरह...
चल, आज फिर चलते हैं...
उस रात की तरह...
जिस रात...
एक हुए थे...
उस रात की तरह...
चल, आज फिर चलते हैं...
उस रात की तरह.....
दो मुटल्ली(070212)
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दो मुटल्ली उड़ गईं
एक गईं परलोक
एक गई परदेस
हम रह गए इह लोक
दो मुटल्ली उड़ गईं
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दो मुटल्ली उड़ गईं
अब कौन लुटाए दुलार
अब कौन दिखाए प्यार
हम किसका करें एतबार
दो मुटल्ली उड़ गईं
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दो मुटल्ली उड़ गईं
कहां खाएं हम माल-पूआ
कहां खाएं हम पोहा-चाट
हम अब खाएं सूखा भात
दो मुटल्ली उड़ गईं
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दो मुटल्ली उड़ गईं
एक के आंचल में समा जाएं
एक की चुनरी में सब मिल जाए
हम अब बोलो कहां टकटकी लगाएं
दो मुटल्ली उड़ गईं
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दो मुटल्ली उड़ गईं
तुमसे चाहूं बता न पाऊं
तुमसे चाहूं बात कर न पाऊं
अब कहो - किससे कहूं, किससे छिपाऊं
दो मुटल्ली उड़ गईं
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दो मुटल्ली उड़ गईं
एक को खूब सताया
एक को बहुत रुलाया
अब मैं बैठ-बैठ पछताया
दो मुटल्ली उड़ गईं
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पत्ता...(110112)
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खुद को
मैं
वो पत्ता समझता था
जो
मिट्टी के ढेले के नीचे दबा है
जिसे
कोई खिसका नहीं सकता

ये गफतल थी मेरी

कब
पानी बरसा
ढेला घुल गया
कब
हवा चली
मैं
उड़ गया

ये हकीकत है मेरी

खुद को
मैं
वो पत्ता समझता था...

अब
निशान भी धुंधले हो रहे
कुरेदूं
तो दर्द
न खरोचूं
तो
निशान मिट जाने का डर
क्या करूं, कैसे सुलझूं

खुद को
मैं
वो पत्ता समझता था...
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फिर लगा
महसूस हुआ
तुम
वो
गुबार हो
गुबार छंटा
मैं
छूट गया
कह दो
ये सब झूठ है...

क्रिसमस(251211)
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याद है
वो क्रिसमस की रात थी
ठिठुरन बहुत थी
ठंड कमाल की थी
मैं
तुम्हारे घर आया था
टोपी पहनी थी
जर्सी की हुड कैप लगाई थी
ऊपर से
मफलर बांधा था
तुमने
लल्लूलाल कहा था
याद है
वो क्रिसमस की रात थी
8 रुपए की सौ ग्राम मूंगफली
और
10 वाली Bar-One लाया था
देर तक बातें की थीं
दांतों को दबाकर
होंठों को भींचकर
खूब शोर मचाया था
रात भर सोए नहीं थे
सिर्फ
एक दूसरे में खोए थे
एक दूसरे में खोए थे
एक दूसरे में खोए थे...
याद है
वो क्रिसमस की रात थी
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आज भी
क्रिस्मस की रात है
पर
ठंड नहीं है
सिर्फ
एक शर्ट पहनी है
बाहें भी मोड़ रखी हैं
आज भी देखती
तो
लल्लूलाल कहती
आज भी
क्रिस्मस की रात है
पर
मूंगफली के दाने नहीं हैं
चॉकलेट
खाना भूल गए हम
ढ़ेर सारी बाते हैं
कहने को कोई नहीं
आज भी
क्रिस्मस की रात है
दांतों को दबाया है
होठों को भींचा है
जी भर के रोया है
खामोशी का शोर है
रात भर
आज भी नहीं सोए हैं
फिर भी
आज हम खोए हैं
आज हम खोए हैं
आज हम खोए हैं
आज भी
क्रिस्मस की रात है...

Wednesday, January 4, 2012


पंक्तियां(030112)
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कुछ पंक्तियां खोजी थीं...
सोचा था घर ले जाऊंगा...
पर कहीं बिखर गईं...
सारी की सारी खो गईं...

अब क्या करूं...
किससे पूछूं...
जननी तो चली गई...
जिसके लिए खोजी थी...
वो छोड़ गई...

कुछ पंक्तियां खोजी थीं...
सोचा था घर ले जाऊंगा...
पर कहीं बिखर गईं...
सारी की सारी खो गईं...

नई तलाश करूं...
नई शुरूआत करूं...
डर रहा हूं...
खुद को...
असहाय पा रहा हूं...

कुछ पंक्तियां खोजी थीं...
सोचा था घर ले जाऊंगा...
पर कहीं बिखर गईं...
सारी की सारी खो गईं...

अब कैसे खोजूं...
हिम्मत कैसे जुटाऊं...
कैसे मानूं...
अब जो तलाश करूंगा...
वो मैं पूरी निभाऊंगा...

कुछ पंक्तियां खोजी थीं...
सोचा था घर ले जाऊंगा...
पर कहीं बिखर गईं...
सारी की सारी खो गईं...

खुद पर संदेह है...
क्योंकि...
जिन्हें खोजा था...
उसे संजो न सका...
अब क्या सफल हो पाऊंगा...

कुछ पंक्तियां खोजी थीं...
सोचा था घर ले जाऊंगा...
पर कहीं बिखर गईं...
सारी की सारी खो गईं..