Friday, February 8, 2013

मेरी आशिकी... (08/02/13)

मेरी आशिकी चाहती है
कि, कभी वापस न लौटूं मैं...

प्यार के जिस मीठे दरिया का पानी पीकर
मिली थी जिंदगी मुझको



अब अपने नफरत के खारे समंदर में
वही डुबोना चाहते हैं हमें


मेरी आशिकी चाहती है
कि, कभी वापस न लौटूं मैं...

ज़रूरत (27/05/12)

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी तपती धूम में
बारिश की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी बीच समंदर में
मीठी दो बूंदों की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी घोंसले में
भूखे बच्चों को होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी अपनों में
किसी अपने की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मंदिर में
प्रार्थना की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी चांदनी को
सूरज की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी जानेवाले को
रोकने वाले की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मिलनेवाले को
गले लगाने की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी किसी अनजाने को
दोस्त की होती है















मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मेघ को
पर्वत की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी अर्जुन को
कृष्णा की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मृत्यु को
मोक्ष की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी तुमको
कभी, मेरी होती थी

तुमने अपनी पूरी कर ली

मेरी ज़रूरत को,
आज भी,
तुम्हारी ज़रूरत है...

ये ज़रूरत है...
ज़रूर रहेगी...