Sunday, February 19, 2012


वक्त...(221211)
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वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

जो वक्त बीत गया
उस वक्त में जी रही हो...
मुझसे कह रही हो
अपनी जिंदगी जी रही हूं...

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

सुना था
गुजरा वक्त
लौटकर नहीं आता...
पर तुम तो
वक्त की रानी निकली...
उस वक्त को
दोबारा जी रही हो...
कमाल कर रही हो...

चेहरा बदल रही हो
किरदार बदल रही हो...

वक्त में पीछे जाकर...
कैसे जी रही हो...?

नहीं...
चेहरा बदल दिया है
किरदार बदल दिया है...

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

नाम देने का
बहुत शौक है तुम्हें...
नये किरदार को
क्या नाम दिया है...?
पुराना भूल गई हो...?
मैं पुकार दूं...?

वक्त में पीछे जाकर...
कैसे जी रही हो...?

हम जब कहते थे
यादों को संजोना है...
एक तस्वीर लेने दो...

तब कहती थी
इस कैमरे का क्या...
दिल के कमरे में
तुम्हारी डिजीटल लाईब्रेरी है...

क्या वो डिलीट हो गई...?

लगता तो ऐसा है...
(पर... काश ऐसा न हो...)

क्योंकि, अब तो
पोस्टरों में
वो पोज नजर आते हैं...
जिन्हें खिंचवाने के लिए
आप हमसे
नजरें चुराते थे...

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

अभी भी
आंखों में चुभन है...
कानों में
सन्नाटे की सीटी है...
हर सांस में
अभी भी
वही तेरी महक है...
जिस्म के
बाएं हिस्से में
वो खट-खट...
होती है...
आंखें बंद करते ही...
होठों पर...
वो एहसास आता है...

पर सवाल भी...
एक यही आता है...

क्या तेरे अंदर...
मुझे,
अभी भी,
पाया जा सकता है...?

वक्त में पीछे जाकर
कोई कितना आगे बढ़ गया...
वक्त में आगे चलने वाले
कहीं पीछे छूट गए...

बता दो
वक्त में पीछे जाकर...
कैसे जी रही हो...?

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