Friday, February 26, 2016

सावन (08/02/13)

सावन, पहले खेल था
नहाने का बहाना था
भीगने की खुशी थी
झूमने की वजह थी

तुम आए...

सावन, सजीला हुआ
मिलने का बहाना हुआ
बूंदें रेश्मी हुईं
प्यार का मौसम सुहाना हुआ

तुम गए...

भादो भी सूखा हुआ
बरखा, जहरीले बाणों सी हुई
प्रेम की खुशबू...
टीस की गंध हुई
तपिश की फुहार...
और, अग्न बरसे

सावन... सावन... सावन...

मोड़ (26/02/2016)


फोटो सौजन्य - http://planmiljoe.dk/(गूगल)


जीवन में हर पल हैं मोड़
कुछ सबक देते हुए आते हैं
कुछ सब लेते हुए जाते हैं
हर मोड़ की अपनी अहमियत है
इन मोड़ों की एक खासियत भी है
किनारे खड़े हो कभी गौर से देखा है इनको?
नहीं, तो आज खड़े होकर देखना, महसूस करना...
हर मोड़ पर सही वक्त पर देखना ही जरूरी होता है
मोड़ पर पहुंचने से पहले देखोगे, तो...
कभी पता नहीं चलेगा कि क्या आनेवाला है
मोड़ पार करके देखोगे, तो...
कभी जान नहीं पाओगे कि क्या ओझल हो गया
इन मोड़ों पर मुड़ ही जाओ, जरूरी नहीं
कुछ से आगे बढ़ो, कुछ पर रुककर देखो
कुछ से पीछे भी हट सकते हो
हर मोड़ पर एक... नहीं, नहीं... कई निशान होते हैं
मैं पढ़ने में, समझने में चूक रहा हूं
तुम सब संभलकर चलो
सही वक्त पर, सही वक्त देखकर बढ़ो...
चलो, अब इस पन्ने को भी कोई नया मोड़ दो,,,,,