Monday, July 26, 2010

ASP (एस्प)








क्या है एस्प? एस्प एक प्रकार का जहरीला सांप होता है... जो डस ले तो इंसान पानी मांगने लायक भी ना रहे... कुछ ऐसे ही लोगों की मेहमाननवाजी हम करते आए हैं... कर रहे हैं और शायद करते रहेंगे... इशारा है अबु और कसाब जैसे लोगों की ओर... जिन्हें हम-आप आतंकवादी के तौर पर जानते हैं... वो शुरू से ऐसे थे... हालात ने ऐसा बनाया... इससे फर्क नहीं पड़ता... जो सच्चाई है वो ये कि हमारी सरकार इन्हें अपने दामाद की तरह रखती है... खातिरदारी ऐसी की किसी को ब्योरा देने की जरूरत नहीं...

ताजा मामला ही लीजिए... एक आतंकी ने दूसरे आतंकी पर जानलेवा हमला किया... पुलिस, प्रशासन सकते में आ गए... बकायदा इलाज करवाया गया... जान बचाने के लिए जेल तक बदल दी गई... आखिर ऐसा किया क्यों गया... दोनों पर केस चल रहा है... एक ना एक दिन सजा मिलेगी... अगर फांसी की सजा ना हो तो बेकार है हमारा कानून... आप खुद सोचिए... इनकी सुरक्षा पर साल में करोड़ों खर्च होते हैं... सुरक्षा से अलग इनकी जरूरतों पर लाखों खर्च होते ही होंगे... ज्यादा लगें तो भी आश्चर्च नहीं... खुद मुंबई के गृहराज्य मंत्री ने भी जेल का दौरा करने के बाद कहा कि अबु की बैरक में इंतजाम देखकर दंग रह गया... उसके कपड़े बाहर से धुल के आते हैं... कपड़े सलीके से रखें हैं... जेल की दीवारों पर मॉडल्स की तस्वीरें चस्पा हैं... दूसरी सुख-सुविधाएं भी हो तो आंखें मत फाड़िएगा... ये तो हमारी जेलों में नॉर्लम बाते हैं... लेकिन एबनॉर्मल ये लगा कि मंत्री जी इतना क्यों चौक गए... उनका भी कोई दूर या पास का साथी कभी न कभी तो जेल गया ही होगा... उस वक्त उसे भी वैसी ही सुविधाएं मिली होंगी जिसकी वो बात कर रहे हैं... तो इतना हल्ला क्यों... या कभी वो गलती से जेल चले गए तो क्या उन्हें ऐसी आलीशान खातिरदारी नहीं मिलेगी...

सुरक्षा इंतजामों की बात हो रही थी... मुंबई के गृहमंत्री आर आर पाटिल जी ने कहा है कि अबु सलेम के आरोपो की जांच होगी... कि उसकी जान को खतरा था... यानी अब सरकार ना सिर्फ आतंकियों की सुरक्षा करेगी बल्कि उनके लिए जांच और शायद मुकदमे भी लड़ेगी... वाह री सरकार वाह... आतंकियों की सुनवाई हो रही है और जब बिहार में सत्ता पक्ष का नेता गांव के लड़के को उलटा लटकाकर उसके तलवों पर लाठी बरसाता है तो लड़के के लिए कुछ नहीं किया जाता... सिर्फ नेता जी को पार्टी से निकालने का फरमान आता है... लड़का मर जाए, कोई अंग भंग हो जाए तो... तो क्या, नेता जी पर भी केस चलेगा... एक पार्टी ने निकाला है तो दूसरी पार्टी का टिकट मिल जाएगा... भारतीय राजनीति जिंदाबाद...

एक आतंकी दूसरे को मारता है तो मारने दो... बचा क्यों रहे हो... जब उन्होंने हजारों को मारा... लाखों को बर्बाद किया तब... इतने साल तक तो पहले अबु को पकड़ नहीं पाए... जब पकड़ भी लिया तो आठ सालों से उसे भी झेला रहे हो और जनता को भी... जब पकड़ा गया था तो मरियल सा दिख रहा था... अब देखो, हट्टा-कट्टा हो गया है... जितने उसके डोले हैं शायद उतनी मेरी जांघ होगी... दौसा को देखों... इतनी उम्र में तो हमारे आपके बुजुर्ग झुक जाते हैं ज्यादातर... वो इतना चुस्त है कि अबु जैसे पर ना सिर्फ धारदार हमला करता है बल्कि दो-चार हाथ भी लगा देता है... देश की जनता का हाल देखो... एक दिन मजदूरी ना करें तो शाम को फाका हो जाता है... तब सरकार उनको रोटी देने नहीं आती है... और आतंकियों को हफ्ते में एक दिन नॉन-वेज खिलाने का पैसा है सरकार के पास... ताकि कैदी तंदरुस्त रहें... अरे यार फांसी दो और खेल खत्म करो... जिसके बार में सभी की एक राय है... कोई भी मानवाधिकार संगठन खड़ा नहीं होने वाला कि क्यों ऐसे लोगों को फांसी दे रहे हो... तो लटका दो इन्हें... इंतजार क्यों और किसका...

क्या इंतजार एक और कंधार का है... एक छूटा है तो इतना हल्ला काट रहा है... दो-चार और छूट गए तो क्या होगा...

वैसे एक बात कहूं... हमारे जैसे लोग सिर्फ लिख ही सकते हैं... जब करने की बात आती है तो दस तरह की बातें सोचने लगते हैं कि क्या करें और क्या ना करें... शायद हम सिर्फ लिखने के लिए हैं... कुछ करने के लिए नहीं... ऐसा मुझे लगता है... कोई दिल पर ना ले... दिल पर ले अगर... तो फिर दिमाग में भी उतारे... तब तो कुछ बात बने... वरना आप कोसते रहो... देश के दामद बनकर तो वो ऐश कर ही रहे हैं...

2 comments:

  1. बहुत सही और सटीक लिखा है मित्र। सबसे पहले तो मेरा साधुवाद। देखिए साहब बात आप कह रहे हैं कि फांसी दे दो, दे दी साहब तो अपने उन भाईयों का क्या कीजिएगा जो उनका ठेका लिए बैठे हैं। कहीं कश्मीर में तो कहीं और। उमर साहब कहते हैं कि अगर कसाब को फांसी दी गई तो देश में दंगे हो जाएंगे। अगर अबू और दौसा को कुछ हो गया तो जहां से इन्हें लाया गया है उन्हें क्या जवाब देेंगे। कसाब को मारा तो पाकिस्तान से क्या कहेंगे मार दिया तुम्हारे लाल को। अरे भैया, भारतीय लोकतंत्र की यही खासितय है। क्या कीजिएगा।

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  2. ...........और हां हो सके तो टाइटिल में लिखू की जगह लिखूं कर लें।

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