Monday, April 19, 2010

ओले-ओले-ओले....



जब भी कोई लड़की देखूं मेरा दिल दिवाना बोले ओले-ओले-ओले---- ओले-ओले-ओले.... गाऊं तराना यारा झूम-झूम के हौले-हौले----- ओले-ओले-ओले....

ये गाना फिल्म "ये दिल्लगी" का है... जो 1994 में आई थी... पात्र थे अक्षय कुमार, काजोल और सैफ अली खान... इस फिल्म के दो गाने बहुत हिट हुए थे... एक की लाइनें ऊपर लिख दी है... दूसरे गाने की लाइनें इस तरह से हैं...

नाम क्या है, प्यार का मारा... घर का पता दो, दिल है तुम्हारा... क्या करते हो, तुमसे प्यार... इसका नतीजा, जो भी हो यार... जो भी हो यार...

इस गाने को लिखने वाले के मन में ये गाना तब आया था जब वो मुंबई की बारिश में फंस गए थे और उनकी कार पर ओले गिरने शुरु हुए.

अब मुद्दे पर आ जाऊं नहीं तो ब्लॉग पढ़ने वाले भाग जाएंगे. पहली लाइन और विडियो को देखकर आप समझ ही गए होंगे कि मैं 'ओलों' की बात कर रहा हूं. सालों बाद ओले गिरते देखे. देखकर मन बहुत खुश हुआ. बचपन के वो दिन याद आए कि कैसे हम स्कूल जाते या आते वक्त ओले गिरने पर उन्हें अपनी वॉटर बॉटल में भर लिया करते थे. जिसकी बॉटल एयर टाइट होती थी उसके ओले देर तक वैसे ही ठोस बने रहते थे. जिसकी वॉटर बॉटल सामान्य होती थी, उसके ओले पानी हो जाते थे. चिढ़ाने में बड़ा मजा आता था.

आज नोएडा ऑफिस में काम कर रहा था तो अचानक मौसम ने पलटी खाई, बादल मचल-मचल कर आए, हवा बौरा गई, और गिरने लगे ओले. तब मेरे मन में कौंधा ये गाना " जब भी कोई लड़की देखूं मेरा दिल दिवाना बोले ओले-ओले-ओले---- ओले-ओले-ओले.... गाऊं तराना यारा झूम-झूम के हौले-हौले----- ओले-ओले-ओले.... "

तभी शोर होने लगा, इनपुट से आवाज आई, ब्रेकिंग मारो आउटपुट को... दिल्ली में पानी बरसा, नोएडा में ओले गिरे. सुनकर हंसी आ गई. ओले गिरना भी ब्रेकिंग बन सकता है. हम तो अपने घर-गांव में ना जाने कितनी बार ओले देख चुके थे. लेकिन ऑफिस के अंदर का माहौल एकदम से बाहर के मौसम की तरह बदल गया. लोग खिड़की की तरफ ओले देखने के लिए भागे. जैसे आसमान से ओले नहीं हीरे गिर रहे हों. बाद में कुछ लोगों से बात हुई तो पता चला कि उन्होंने ओले पहली बार देखे हैं

दोष मेरे मित्रों का नहीं है, शायद उन्होंने दिल्ली में कभी ओले गिरते नहीं देखे या फिर, सिर्फ कहावत में ही सुना है कि... सिर मुड़ाते ओले पड़े. मैं उनका मजाक नहीं उड़ा रहा हूं. सिर्फ इतना सोच रहा हूं कि हमलोग क्या-क्या खोते जा रहे हैं. अपने पर्यावरण को कितना बेगाना बनाते जा रहे हैं. बच्चों की किताबे देखता हूं तो कई ऐसी चीजें दिखती हैं जो हमने देखी है और आज वो सिर्फ किताबों में ही देख रहे हैं, मसलन, घर के रोशनदान से गौरेया का घोंसला गायब हो गया है और गायब हो गई हैं उसकी गौरेया भी. अब आम के पेड़ों पर तोते कम ही दिखते हैं. चील, गिद्ध तो ना जाने कहां उड़ गए हैं. ऐसी कई चीजे हैं जो हम खोते जा रहे हैं. जरूरत पर्यावरण को बचाने से ज्यादा खुद को बचाने की है... सोचिए...


ओले-ओले-ओले....ओले-ओले-ओले....ओले-ओले-ओले....ओले-ओले-ओले....

3 comments:

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  2. sirf sochney se hi kam nahee banney wala mere mitra..jarurat hai kuch kadam uthaney ki. yaad rakhiye ki shuruat hmaesha choti hoti hai lekin ant hum aur aap hi tay kar saktey hain. to bigadti pryawaran ki dasha ko sudharney ke liye hum shuruat to nahee kar saktey kyuki wah bhut pehley hi ho chuki hai lekin yaad rakhna hoga ki ant humey hi karna hai ..aur ant kaisey kiya jaye is soch me prayas hona jyada jaruri hai . mainey soch liya hai ki polythene me saman nahee launga chahey saman ko na hi khareedna padey. main to sochne ke sath karna b shuru kar diya hu dekhna hai ki kitney log abhi karney par utartey hain......

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  3. सच में दादा।
    मज़ा आ गया,वैसे ये सच्चाई भी है..अब नहीं बरसते पहले की तरह टूट के बादल...पर्यावरण का नकारात्मक प्रभाव सिर चढ़कर बोल रहा है।
    वैसे बहुत दिनों के बाद ओले-ओले-ओले सुनने को मिला....

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