Friday, March 12, 2010

खेल का खेल !


खेल, जीवन का अहम हिस्सा. खेलने से ना सिर्फ शरीर दुरुस्त बनाता है बल्कि, दिमाग को भी सही समय पर सही निर्णय लेने की तरकीब आ जाती है. और अब तो वो कहावत भी झूठी पड़ गई है कि 'पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब' अब तो हातल ये है कि जो पढ़ता है वो खोता है और जो खेलता वो खेलता है पैसों में.

खेल को लेकर इतनी भूमिका इसलिए बांध रहा हूं क्योंकि जिस खेल के बारे में लिखने जा रहा हूं उसको मैंने कभी नहीं खेला. एक बार फील्ड पर गया तो हॉकी की बॉल उधार मांगकर ले आया और MNIT के बेकार पड़े स्वीमिंग पूल में उससे क्रिकेट खेलनी शुरू कर दी. शायद मेरे ही जैसों की वजह से हॉकी की इतनी बदतर हालत हुई है. 12 मार्च को भारत विश्व हॉकी कप में अपना अंतिम मैच भी अर्जनटीना से 2-4 से गंवा बैठा. दुःख हुआ, और इसके पीछे भी मैं अपने को ही जिम्मेदार मानता हूं, क्योंकि हॉकी खेलने आती तो क्या पता आज मैं टीम में होता और 1-2 गोल कर दी देता. वैसे बता दूं कि मेरे नाना जी और मामा जी दोनों ही हॉकी खिलाड़ी रह चुके हैं. लेकिन मेरा मन कभी हॉकी में नहीं लगा. शायद इसीलिए मम्मी ने भी क्रिकेट नहीं खेलने दी, हॉकी के लिए कहता तो क्या पता हामी भर दी जाती.

पर अब क्या? क्या फिर से हॉकी के साथ वही सलूक किया जाएगा, जो रवैया विश्वकप के पहले था. खेलने के लिए सुविधाएं नहीं, अच्छी किट नहीं, बढ़िया कोच नहीं, सही रणनीति नहीं. क्या खुद को गलाकर खेलें हॉकी हमारे हॉकी खिलाड़ी ?

कुछ दस दिन पहले लुधियाना से एक खबर आई थी कि, अंडर 14 और अंडर 16 के हॉकी खिलाड़ियों को हॉस्टल में 2 दिन तक खाना नहीं मिला. ये मजाक नहीं है, कड़वा सच है. अंडर 14 और अंडर 16 के हॉकी खिलाड़ी जिन्हें कल को राष्टीय खेल का परचम बुलंद करना है, उनको 2 दिन खाना नहीं मिला. ऐसा नहीं है कि बच्चे भूखे रहे, अपने पैसों से खाना खरीद कर खाया. पढ़ना हो तो सेल्फ फाइनेन्सड कोर्स में दाखिला लो, खेलना हो तो खुद के पैसों से खेलों, नौकरी करनी हो तो यंग एंत्रप्रेन्योर बन जाओ. सेल्फ स्किल्ड बनों, मल्टी स्किल्ड बनों पर किसी तरह की मदद की उम्मीद मत करों. भला ऐसे में आप कैसे किसी खिलाड़ी से गोल्ड या विश्वकप की उम्मीद कर सकते हैं.

एक सवाल जो मेरे मन में है, आप सब के बीच भी पहुंचाना चाहता हूं. टीवी पर सहवाग, प्रियंका चोपड़ा और ओलंपिक शूटर राज्यवर्धन सिंह राठौर हमारी हॉकी टीम के लिए प्रमोशन करते दिखे. लेकिन इनमें से कोई भी हॉकी मैच देखने स्टेडियम पर नहीं पहुंचा. अगर पहुंचा, तो मैं ये चाहूंगा कि मेरी नॉलेज को पूरा करने के लिए ऐसी कोई फोटो या विडियो क्लिप आप में से कोई भी मुझे मेरे ई-मेल (ankura107@gmail.com) पर भेजे दे. आप सब खुद इस बात को समझिए कि कोई भी खिलाड़ी तब तक अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता है जब तक कि उसे हमार-आपका साथ नहीं मिलता. क्रिकेट इसीलिए सफल हुआ क्योंकि क्रिकेट को बच्चा-बच्चा पसंद करता है. बच्चा ठीक से खड़ा होना भी सीख नहीं पाता और पापा उसके हाथ में बैट थमा देते हैं. बेटा बनेगा तो सचिन ही बनेगा. दूसरों को क्या कहूं मैं खुद दो चार हॉकी खिलाड़ियों के अलावा किसी और का नाम नहीं जानता.

खैर जो हुआ सो हुआ. अब नई शुरुआत करनी है. हॉकी के लिए एक साथ खड़ा होना है. कोशिश यही रहेगी कि एक दूसरे के साथ हॉकी से हॉकी मिलाकर खड़े हों.

3 comments:

  1. i just feel ashamed...bcz we r 1 billion ppl (more than 1 billion) and still we cannt even produce 11 players who can play gud hockey

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  2. अंकुर भाई आपने बढ़िया किया जो आप ने हाकी नहीं खेले नहीं तो ब्लॉग कौन लिखता. खैर पैसा प्रचार और प्रभुत्व के लिए जूझ रही भारतीय हाकी टीम की दुर्दशा के लिए आप और हम ही जिम्मेदार हैं. हाकी टीम के कोच जोस बरसा ने तो पहले ही कह दिया था की हम 7th और 8th नंबर के लिए खेल रहे हैं. रही बात प्रचार की तो उसके लिए हाकी संघ को कुछ करना होगा.

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  3. http://www.khaskhabar.com/sports-news.php?storyid=22639

    इसके अलावा ओलंपिक में भारत को रजत पदक दिलाने वाले निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौर ने तो बाकायदा मेजर ध्यान चंद स्टेडियम जाकर भारत और पाकिस्तान का हॉकी मैच देखा। बाद में उन्होंने टि्वटर पर लिखा, विश्वकप हॉकी 2010 में लिए स्टेडियम का माहौल बिजली जैसा है। भारत के स्टार बल्लेबाज युवराज सिंह ने भी आस्ट्रेलिया से लौटते ही टि्वटर पर लिखा, मै भारत को मैच के लिए सभी शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

    बेशक आपनी भावनाएं हॉकी के लिए बेहतर हैं। मेरे मुताबिक हॉकी के बुरे हालात प्रायोजकों की कमी की वजह से हैं। प्रायोजक आजकल पैसा कमाना चाहते हैं। हॉकी का कोई भी खिलाड़ी क्रिकेट के खिलाड़ियों जितना प्रसिद्ध नहीं है। हालांकि सरकार मदद करे तो खिलाड़ी मेडेल बटोरकर लोगों के दिलों में अपनी जगह बना सकेंगे। लेकिन सरकार की उदासीनता और प्रायोजकों की कमी की वजह से इस खेल के हालात इतने खराब हैं।
    सितारों के मैच देखने पहुंचने की बात पर मै सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि राज्यवर्धन राठौर मैच देखने पहुंचे थे। रही बात फुटेज या फोटोग्राफ के उपलब्ध होने की। तो इस बारे में आयोजक या मीडियाचैनल वाले जिम्मेदार हैं। शायद उनकी नजर में राठौर उतनी बड़ी हस्ती नहीं होंगे। जिससे उन्हे टीआरपी मिल सके। हालांकि मैंने खबर का लिंक भेज दिया है और खबर का कुछ हिस्सा भी भेज दिया है..... पढ़ें जरूर....

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