Sunday, September 23, 2018

है आदमी! (23092018)

नाराजगी जहां से नहीं खुद से रखता है, उम्मीदें संजोता है, इसलिए नादां है आदमी।

तूफानों से डरता नहीं, मुंह मोड़नेवालों से हैरां है, इसलिए परेशां है आदमी।


जो कभी सोचे नहीं, खोजे नहीं ताउम्र एक भी जवाब, समझौतों में जी रहा, इसलिए पशेमां है आदमी।

देता रहा हर बार खुद को ठगने के मौके तमाम, गुनहगार खुद में है, इसलिए औरों पर मेहरबां है आदमी।

Friday, February 26, 2016

सावन (08/02/13)

सावन, पहले खेल था
नहाने का बहाना था
भीगने की खुशी थी
झूमने की वजह थी

तुम आए...

सावन, सजीला हुआ
मिलने का बहाना हुआ
बूंदें रेश्मी हुईं
प्यार का मौसम सुहाना हुआ

तुम गए...

भादो भी सूखा हुआ
बरखा, जहरीले बाणों सी हुई
प्रेम की खुशबू...
टीस की गंध हुई
तपिश की फुहार...
और, अग्न बरसे

सावन... सावन... सावन...

मोड़ (26/02/2016)


फोटो सौजन्य - http://planmiljoe.dk/(गूगल)


जीवन में हर पल हैं मोड़
कुछ सबक देते हुए आते हैं
कुछ सब लेते हुए जाते हैं
हर मोड़ की अपनी अहमियत है
इन मोड़ों की एक खासियत भी है
किनारे खड़े हो कभी गौर से देखा है इनको?
नहीं, तो आज खड़े होकर देखना, महसूस करना...
हर मोड़ पर सही वक्त पर देखना ही जरूरी होता है
मोड़ पर पहुंचने से पहले देखोगे, तो...
कभी पता नहीं चलेगा कि क्या आनेवाला है
मोड़ पार करके देखोगे, तो...
कभी जान नहीं पाओगे कि क्या ओझल हो गया
इन मोड़ों पर मुड़ ही जाओ, जरूरी नहीं
कुछ से आगे बढ़ो, कुछ पर रुककर देखो
कुछ से पीछे भी हट सकते हो
हर मोड़ पर एक... नहीं, नहीं... कई निशान होते हैं
मैं पढ़ने में, समझने में चूक रहा हूं
तुम सब संभलकर चलो
सही वक्त पर, सही वक्त देखकर बढ़ो...
चलो, अब इस पन्ने को भी कोई नया मोड़ दो,,,,,

Friday, August 16, 2013

अल्प विराम

वो रात भी अपनी ही थी, ये रात भी अपनी ही है
कल बिछड़े तो क्या हुआ, कल फिर मिलेंगे
राह में हाथ छूटा तो क्या, थोड़ा रोए तो क्या
न समझो साथ आखिरी है, ये अल्प विराम है
बीते हुए लम्हों को जिओ, आने वालों के इंतजार में
ये रात आखिरी है, सुबह के इंतजार में...

Friday, February 8, 2013

मेरी आशिकी... (08/02/13)

मेरी आशिकी चाहती है
कि, कभी वापस न लौटूं मैं...

प्यार के जिस मीठे दरिया का पानी पीकर
मिली थी जिंदगी मुझको



अब अपने नफरत के खारे समंदर में
वही डुबोना चाहते हैं हमें


मेरी आशिकी चाहती है
कि, कभी वापस न लौटूं मैं...

ज़रूरत (27/05/12)

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी तपती धूम में
बारिश की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी बीच समंदर में
मीठी दो बूंदों की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी घोंसले में
भूखे बच्चों को होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी अपनों में
किसी अपने की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मंदिर में
प्रार्थना की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी चांदनी को
सूरज की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी जानेवाले को
रोकने वाले की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मिलनेवाले को
गले लगाने की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी किसी अनजाने को
दोस्त की होती है















मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मेघ को
पर्वत की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी अर्जुन को
कृष्णा की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी मृत्यु को
मोक्ष की होती है

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
वैसी, जैसी तुमको
कभी, मेरी होती थी

तुमने अपनी पूरी कर ली

मेरी ज़रूरत को,
आज भी,
तुम्हारी ज़रूरत है...

ये ज़रूरत है...
ज़रूर रहेगी...

Tuesday, June 26, 2012

कोशिश... (180612)

लिखने की कोशिश करता हूं
समझा नहीं सकता
क्या लिख रहा हूं
पहले जो समझ लूं तो,
लिख ही क्यों दूं

कहने की कोशिश करता हूं
वो कह न सका
जो कह पाता
जो कह देता
वो सुन लेते

समझाने की कोशिक करता हूं
जो समझा न सका
वो समझ न सके
जो समझ पाते
तो रुक जाते

सुनाने की कोशिश करता हूं
वो दूर बहुत हैं
सुनते, समझते
तो उठते नहीं
कोशिश ये होती नहीं...